...

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मन की दराज़
मन की अलमारी यूँ तो खाली दिखती है,
पर जब बहुत गहराई में उतरो,
तो इसकी दराज़ों में दिखते हैं,
तुम्हारे दिए ख़त, तुम्हारे लिखे हुए कुछ पन्ने,
जिन्हें कोई और देखेगा तो शायद उसे कुछ भी ना दिखाई देगा,
मग़र जब कोई मेरी नज़रों से देखेगा तो पायेगा उनमें वो जज़्बात जिन्हें तुम कभी कह नहीं पाईं।।

सुनो!! तुम्हारे जाने के बाद भी ये दराज़ वैसी की वैसी है, अब कोई इच्छा या उम्मीद नहीं है, कि तुम आओ और इन्हें फ़िर से पढ़ो,
ये तो बस इस इंतज़ार में हैं कि कब उम्र पूरी हो और ये खुद वक़्त की दीमक की खुराक बन जाएं।।
© Himanshu