...

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यादें
यादो की आवारगी फिर सता रही है
तेरी जुस्तजू आवाजे फिर लगा रही है !

ये क्या हो रहा है जाना जुदाई मे तुम्हारे
बिसरी हुई यादे क्यो निंदे उडा रही है!

बुंदाबुंदी जज्बातों की हो अलग बात है
बे-मौसम क्यो अखियाँ भरी जा रही है !

जालिम निंदिया भी क्यो तरसा रही है
टुटने के वास्ते फिर ख्वाब दिखा रही है !

तनहाईयों से शायद कोई सदा आ रही है
दुर से इक आवाज पहचानी बुला रही है !
© संदीप देशमुख