...

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बेवस हम इस कदर हो गए ,जमाने में सब हमसे बेखबर हो गये
सौदे हो ना पाए उन रिश्तो से
जिनकी कीमत मेरी इज्जत थी
भूल गए हम उन रिश्तो को
इंतजार में जो नजर तरसती थी
कल तक वे अपने लगते थे
छुपाये हाथ में कटार खड़े हैं
ना मालूम कौन किस पल बार करे सीने पर
हम हाथ में पकड़े ढाल खड़े हैं
बेबस आज हम कितने हो गए
बे जो अपने थे बे आज दूर खड़े हैं
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