...

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मेरी कहानी...
मैंने जो कहानियां लिखीं, उनमे से कुछ मिलती मेरी कहानी से,
मैं सोचता हूँ तृष्णा शांत हों जाए, मग़र प्यास बुझती नहीं अब पानी से !

की मैं जिन लोगों के, क़रीब हुआ करता था कभीं ग़म-गुसारी को,
आज उन सब से इस दुनिया से दूर हूँ, कुछ अपनों की मेहरबानी से !

उम्र के इस पड़ाव पर क्या शिकवा करूँ, मैं किसी से चेहरे पर सिलवटें लिए,
लोग बिना बोले ही जवाब दे देते हैं, निगाहों और पेशानी से !

सोचते हैं कि अब बस बहुत हुआ, सब कुछ तो देख लिया हैं इस सफ़र में,
चलो अब सब शिकवे गिले, शिकायतें छोड़े, रुख़सत होते हैं इस जिंदगानी से !

© विकास शर्मा