...

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ऐसा क्या लिख दें...
ऐसा क्या लिख दें, बताओ? जो भा जाए तुमको!
दिल चीर के बनाएँ स्याही, जो लुभा जाए तुमको!

हाँ में हाँ भी अब हमारी रास तुमको आती नहीं है,
ऐसा क्या कह दें और कि जो बहला जाए तुमको!

खलती थी पलभर की दूरी,अब अमिट फ़ासले हैं,
क्या बिछाएँ राह में कि क़रीब लाया जाए तुमको!

ख़ामोशी समझने वाले अब समझते नहीं लफ़्ज़,
ख़ुद को कितने दें ज़ख़्म जो तड़पा जाए तुमको!

ज़रूरत रही नहीं उन्हें, अब मिन्नतें मतकर 'धुन',
करते हैं उसके हिस्से ख़ुशी जो पा जाए तुमको!
© संगीता साईं 'धुन'

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