...

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थक सी गई है आंखें
थक सी गई है आंखें, नीद भी नहीं आती,
बैचेनी सी है दिल में,आ भी नहीं भरी जाती,
जिस भी राह चलूं, मंजिल नहीं ही नहीं आती,
खत्म हो रहें हैं,इन आंखों से सब सपने धीरे धीरे मेरे,
बचपन से जो थे इन आंखों में, धीरे धीरे भरें,
तू ही बता ए खुदा कौन सी राह चुनूं ....
कोई उम्मीद दिखा तो उस के धागे बनूं!!
© Rohit Kumar Gond
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