...

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Mind-nature v/s SOUL-nature
यूँ तो दुनिया आप ही चलाते हैं, प्रभूजी...,
पर मन को गुमान यही है, अब तक...,
जिसका समाधान, अब तक न मिला,
"मैं" उसे सुलझा क्यों नहीं सकता...,

निरंतर विचारों में मग्न,ये मन...,
समय की दस्तकों को सुन ही नहीं पाता..,
और कहता है, कोई मुझे समझ ही नहीं पाता...,
मृगतृष्णा सा ये जीवन, जब हो जाता है,
भटकता हैं, ज़माने में दर - बदर बड़ा,
भूलकर अपने भीतर के अमृत को,
वो प्यासा ही...