...

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अब कोई नहीं चाहिए...
एक रोज़ थी आस दिल में
कोई हो जिसे अपना कहा जाए
जिस पर हक से हक जमाया जाए
हर बात जिसे बेधड़क बताई जाए
हर खुशी में जिसे शामिल किया जाए
जो समझ सकें क्या हुआ
जो सब्र के साथ कुछ सुन सकें
जब कोई न हो तब भी उसके होने का अहसास हो
दूर ही रहे पर अच्छी यादों के साथ हो
ना मुराद की अभी गुल गुलशन गुलाब की
बांटनी थी कुछ कच्ची मुश्किलें जिंदगी...