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kyu Karu?
कभी सोचती हुं,
लिख दूं दवात _ए _चश्म से तुझको।
जीवन के हर पन्ने पर,
फिर ख्याल आता है की,
लिख कर तुझे अश्क _ए _स्याही
बर्बाद क्यूं करूं।।
कभी सोचती hu खत्म करू ये रूठने
मनाने का खेल
कर लूं मैं थोड़ी से बात ,
फिर सोचती हुं की हर बार शुरुआत मैं ही क्यूं करूं।।
लिख दूं दवात _ए _चश्म से तुझको।
जीवन के हर पन्ने पर,
फिर ख्याल आता है की,
लिख कर तुझे अश्क _ए _स्याही
बर्बाद क्यूं करूं।।
कभी सोचती hu खत्म करू ये रूठने
मनाने का खेल
कर लूं मैं थोड़ी से बात ,
फिर सोचती हुं की हर बार शुरुआत मैं ही क्यूं करूं।।
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