गजल
बात सारी गज़ब वो करता है,
दिल जो चाहे मगर न कहता है।
दरमियाँ कुछ नहीं है वैसे तो,
साथ हो वो नहीं तो खलता है।
उसकी आंखें जो कह रही हैं यूं,
जाने कहने से क्यूँ वो डरता है।
भूल जाना उसे नहीं मुमकिन,
चांंद ये रोज जो निकलता है।
कितने आये गये मगर देखो,
दिल में अब भी वही खटकता है।
© शैलशायरी
दिल जो चाहे मगर न कहता है।
दरमियाँ कुछ नहीं है वैसे तो,
साथ हो वो नहीं तो खलता है।
उसकी आंखें जो कह रही हैं यूं,
जाने कहने से क्यूँ वो डरता है।
भूल जाना उसे नहीं मुमकिन,
चांंद ये रोज जो निकलता है।
कितने आये गये मगर देखो,
दिल में अब भी वही खटकता है।
© शैलशायरी
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