कुछ "अनमोल" लोगों से"रिश्ते" रखता हूँ।
ख्वाहिश नहीं, मुझे
मशहूर होने की,
आप मुझे "पहचानते" हो,
बस इतना ही "काफी" है।
अच्छे ने अच्छा और
बुरे ने बुरा "जाना" मुझे,
जिसकी जितनी "जरूरत" थी
उसने उतना ही "पहचाना "मुझे!
जिन्दगी का "फलसफा" भी
कितना अजीब है,
"शामें "कटती नहीं और
"साल" गुजरते चले जा रहे हैं!
एक अजीब सी
'दौड़' है ये जिन्दगी,
"जीत" जाओ तो कई
अपने "पीछे छूट" जाते हैं और
हार जाओ तो,
अपने ही "पीछे छोड़ "जाते हैं!
बैठ जाता हूँ
मिट्टी पे अक्सर,
मुझे अपनी_
"औकात" अच्छी लगती है।
मैंने समंदर से
"सीखा "है जीने का तरीका,
चुपचाप से "बहना "और
अपनी "मौज" में रहना।
ऐसा नहीं कि मुझमें
कोई "ऐब "नहीं है,
पर सच कहता हूँ
मुझमें कोई "फरेब" नहीं है।
जल जाते हैं मेरे "अंदाज" से,
मेरे "दुश्मन",
एक मुद्दत से मैंने
न तो "मोहब्बत बदली,
और न ही "दोस्त बदले "हैं।
एक "घड़ी" खरीदकर,
हाथ में क्या बाँध ली,
"वक्त" पीछे ही
पड़ गया मेरे!
सोचा था घर बनाकर
बैठूँगा "सुकून" से,
पर घर की जरूरतों ने
"मुसाफिर" बना डाला मुझे!
"सुकून" की बात मत कर
बचपन वाला, "इतवार" अब नहीं आता!
जीवन की "भागदौड़" में
क्यूँ वक्त के साथ, "रंगत "खो जाती है ?
हँसती-खेलती जिन्दगी भी
आम हो जाती है!
एक सबेरा था
जब "हँसकर "उठते थे हम,
और आज कई बार, बिना मुस्कुराए
ही "शाम" हो जाती है!
कितने "दूर" निकल गए
रिश्तों को निभाते-निभाते,
खुद को "खो" दिया हमने
अपनों को "पाते-पाते"।
लोग कहते हैं
हम "मुस्कुराते "बहुत हैं,
और हम थक गए_,
"दर्द छुपाते-छुपाते"!
खुश हूँ और सबको
"खुश "रखता हूँ,
"लापरवाह" हूँ ख़ुद के लिए
मगर सबकी "परवाह" करता हूँ।
मालूम है
कोई मोल नहीं है "मेरा" फिर भी
कुछ "अनमोल" लोगों से
"रिश्ते" रखता हूँ।
© "शायर शुभ श्रीवास्तव"
मशहूर होने की,
आप मुझे "पहचानते" हो,
बस इतना ही "काफी" है।
अच्छे ने अच्छा और
बुरे ने बुरा "जाना" मुझे,
जिसकी जितनी "जरूरत" थी
उसने उतना ही "पहचाना "मुझे!
जिन्दगी का "फलसफा" भी
कितना अजीब है,
"शामें "कटती नहीं और
"साल" गुजरते चले जा रहे हैं!
एक अजीब सी
'दौड़' है ये जिन्दगी,
"जीत" जाओ तो कई
अपने "पीछे छूट" जाते हैं और
हार जाओ तो,
अपने ही "पीछे छोड़ "जाते हैं!
बैठ जाता हूँ
मिट्टी पे अक्सर,
मुझे अपनी_
"औकात" अच्छी लगती है।
मैंने समंदर से
"सीखा "है जीने का तरीका,
चुपचाप से "बहना "और
अपनी "मौज" में रहना।
ऐसा नहीं कि मुझमें
कोई "ऐब "नहीं है,
पर सच कहता हूँ
मुझमें कोई "फरेब" नहीं है।
जल जाते हैं मेरे "अंदाज" से,
मेरे "दुश्मन",
एक मुद्दत से मैंने
न तो "मोहब्बत बदली,
और न ही "दोस्त बदले "हैं।
एक "घड़ी" खरीदकर,
हाथ में क्या बाँध ली,
"वक्त" पीछे ही
पड़ गया मेरे!
सोचा था घर बनाकर
बैठूँगा "सुकून" से,
पर घर की जरूरतों ने
"मुसाफिर" बना डाला मुझे!
"सुकून" की बात मत कर
बचपन वाला, "इतवार" अब नहीं आता!
जीवन की "भागदौड़" में
क्यूँ वक्त के साथ, "रंगत "खो जाती है ?
हँसती-खेलती जिन्दगी भी
आम हो जाती है!
एक सबेरा था
जब "हँसकर "उठते थे हम,
और आज कई बार, बिना मुस्कुराए
ही "शाम" हो जाती है!
कितने "दूर" निकल गए
रिश्तों को निभाते-निभाते,
खुद को "खो" दिया हमने
अपनों को "पाते-पाते"।
लोग कहते हैं
हम "मुस्कुराते "बहुत हैं,
और हम थक गए_,
"दर्द छुपाते-छुपाते"!
खुश हूँ और सबको
"खुश "रखता हूँ,
"लापरवाह" हूँ ख़ुद के लिए
मगर सबकी "परवाह" करता हूँ।
मालूम है
कोई मोल नहीं है "मेरा" फिर भी
कुछ "अनमोल" लोगों से
"रिश्ते" रखता हूँ।
© "शायर शुभ श्रीवास्तव"