...

6 views

" प्रीत की रीति "
खण्डहर में अब तब्दील कर दो,
घृणा की कहीं अगर दीवार हो।
जनमानस में ये भव भर दो कि
तुम मुहब्बत की मीनार हो।

प्रत्येक हृदय की भित्तियों पर,
संवेदनाओं को चित्रित कर दो।
कूटनीति के ये जो अम्बार हैं,
नीतियों मे परिवर्तित ही कर दो।
सिद्ध कर दो जग पटल पर कि,
मानवता का भी चित्रकार हो।
जनमानस में ये भाव भर दो कि
तुम मुहब्बत की मीनार हो।

चिन्तन का सर्वोच्च शिखर हो,
दूरदर्शिता में नि:संदेह प्रखर हो।
मृदुभाषी,मितव्ययिता का स्वामी
मुस्कुराहट का तुम ही अधर हो।
विचारों को जन्म भी देने वाला,
तुम ही तो एक मात्र आकार हो।
जनमानस में ये भाव भर दो कि
तुम मुहब्बत की मीनार हो।

पाश्चात्य की आबो-हवाओं को,
मोड़ दो उनकी ही दिशाओं में।
नव कोपलें पल्लवित होंगी तब,
नव भारत की इन्हीं फिजाओं में।
भूत का आर्यावर्त पुन: आयेगा,
अगर भविष्य का शिल्पकार हो।
जनमानस में ये भव भर दो कि
तुम मुहब्बत की मीनार हो।

प्यार की बोधगम्य भाषाएँ और,
मधुर सम्बन्धों को स्थापित करो ।
प्रतिबद्ध समय और कर्म सेवा हो,
शारीरिक स्पर्श, उपहार ज्ञापित करो।
आशाओं को नव जीवन दे दो,
अत्मसातक, यथार्थ में साकार हो।
जनमानस में ये भाव भर दो कि
तुम मुहब्बत की मीनार हो।