सुभान अल्लाह
भटकती हूँ जिसकी चाह में दर बदर
वो अगर मिल जाए तो सुभान अल्लाह
जितनी दूरियां हैं हम दोनों के दरमियां कुछ वो भी तेय कर जाए तो सुभान अल्लाह
मेरी उम्मीदें जो तेरी चौखटो पे हैं बरसो से इंतजार में
अगर वो पूरी हो जाए तो सुभान अल्लाह
तेरी आस की दरकार में कब से बैठी हूं जो तू एक दफा आ जाए तो सुभान अल्लाह
तेरे साथ होने ही चाह में कब से ठहरी हूं जो तू अपना बना ले तो सुभान अल्लाह।।
-AM
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वो अगर मिल जाए तो सुभान अल्लाह
जितनी दूरियां हैं हम दोनों के दरमियां कुछ वो भी तेय कर जाए तो सुभान अल्लाह
मेरी उम्मीदें जो तेरी चौखटो पे हैं बरसो से इंतजार में
अगर वो पूरी हो जाए तो सुभान अल्लाह
तेरी आस की दरकार में कब से बैठी हूं जो तू एक दफा आ जाए तो सुभान अल्लाह
तेरे साथ होने ही चाह में कब से ठहरी हूं जो तू अपना बना ले तो सुभान अल्लाह।।
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