!...छुपा हुआ मोती...!
मंसूर, शिबली भी मैं, और अनल हक भी हूं
दीन ओ दरवेश हूं मैं, और बड़ा जाहिल भी हूं
आवारगी पसंद है और इश्क़ में तन्हां भी हूं
हू बा हू, हूं मैं क्या, किसे खबर की मैं क्या हूं
मुफ्ती ना मैं मुल्ला ना कस्ती ना...
दीन ओ दरवेश हूं मैं, और बड़ा जाहिल भी हूं
आवारगी पसंद है और इश्क़ में तन्हां भी हूं
हू बा हू, हूं मैं क्या, किसे खबर की मैं क्या हूं
मुफ्ती ना मैं मुल्ला ना कस्ती ना...