...

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!...छुपा हुआ मोती...!
मंसूर, शिबली भी मैं, और अनल हक भी हूं
दीन ओ दरवेश हूं मैं, और बड़ा जाहिल भी हूं

आवारगी पसंद है और इश्क़ में तन्हां भी हूं
हू बा हू, हूं मैं क्या, किसे खबर की मैं क्या हूं

मुफ्ती ना मैं मुल्ला ना कस्ती ना किनारा हूं
मौज ए दरिया हूं मैं, हर लम्हा तुफां मैं हूं

दोस्तों को खबर नहीं मेरे इश्क़ ओ जमाल की
मैं रब का कुन हूं और नहीं मालूम की क्या हूं

पर्दानशी की तरह पिंहा हू अपने चार ओ शू
जैसे खुदा एक राज है मैं भी तो एक राज हूं

खलवत ए जां हूं बहर ओ बर में गुमशुदा हूं
चंद गुफ्तुगु क्या कि तुमने, सोचते हो मैं क्या हूं

© —-Aun_Ansari