...

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रुक जा
सुनो ना रुक जा रात, मैं भी तेरे संग चलता हूँ!
थोड़ा सा उनसे मिल,अपनी बात कह चलता हूँ!
अगर तू न रुका तो, मन की बातें ठहर जायेगी,
और रह जायेगा अगले जन्म का इंतज़ार!

न कोई शिकवा, न कोई शिकायत उनके लिए!
जंगली हूँ कही अगले जन्म अजनबी न होए!
इसलिए कहता हूँ, रुक जा रात, मैं चलता हूँ!
खाली हाथ आये थे जप माला किये चलता हूँ!

सुनो ना रुक जा रात, मैं भी तेरे संग चलता हूँ!
आखिरी बार उनसे, मन की बात कर चलता हूँ!
होगी थोड़ी नोंक झोंक, देर लगेगी , तू रुक जा!
चूड़ियों की खनक भी न होगी, तू रुक जा रात!

हृदय की चंद ग़ज़लें और नज़्में सुना चलता हूँ!
देख जिसको रहा मैं, मेरी परछाई छुईमुई सी हैं!
इसलिए कहता हूँ, रुक जा रात, मैं चलता हूँ!
हृदय को स्पर्श कर पूर्ण विराम दिये मैं चलता हूँ!

#मनःश्री
© Shandilya 'स्पर्श'
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