...

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मेरा गांव
कहां गया वो गांव मेरा
जहां रहती थी चहल-पहल
पेड़ किनारे, छांव बैठे
बुजुर्ग लेते थे लोगों की खोज-खबर
जहां ना होता कोई झूठा दिखावा
चलती थी सच्चाई की लहर ।।

जीवन का ये मेरा सफर
गांव छोड़कर आये शहर
अब नये सपनों की तलाश में
भटक रहे हैं दर-बदर
यहां देखा है मैनें लोगों को रंग बदलते
और मीठी मुस्कान के पीछे लिये ज़हर ।।

कहां गया वो गांव मेरा
जहां रहती थी चहल-पहल
बचपन बारिश में भीगे है
कागज़ की कश्ती चली है नहर-नहर
अमिया बागीचे से चुराकर
सब भाग जाते थे इधर-उधर ।।

कहां गया वो गांव मेरा
जहां रहती थी चहल- पहल
सब खुशियां बांटते थे चारों पहर
लोगों पर होती थी रब की मेहर
सुकून जो ढूंढा हर डगर, दिल कहे अब वापस
आकर उन गांव की गलियों में ठहर ।।
© poonam