...

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वो कौन थी
वो कौन थी, जो रहती मौन थी
खुद से रूठी थी, अंदर से टूटी थी

चेहरे पे मुस्कान थी, अंदर गमों की दुकान थी
बाहर से शांत बवंडर थी, अंदर से दुखों की समंदर थी
न किसी को कुछ बोलती थी, मगर जज्बतों को तोलती थी

रात को ना सोती थी, दिन भर वो रोती थी
कहती न कुछ थी, सहती बहुत थी
दिल में कहीं गम थी, आंखें भी नम थी

कुछ न कहती थी, ख्वाबो में रहती थी
न किसी को आंखें दिखाती थी, न किसी से नजरें मिलाती थी
न किसी को अपना बताती थी, न किसी पर हक ही जताती थी

वो कौन थी, जो रहती मौन थी
खुद से रूठी थी, अंदर से टूटी थी !

क्यों टूट गई वो अंदर से, समझ लो तो गंभीर सवाल है;
सुन तो लेते हैं सभी उनकी बात, महसूस कर लो तो चट्टान विशाल है ....... 🤍❣️


© Aman Sri

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