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दोस्ती
ग़र मुझसे मृत्यु के बाद ये रब पूछे,क्या है सच्ची दोस्ती का फल
मैं कहूंगा रूक जरा, याद करलू वो चंद खुशियों के नाजुक पल
वो हो पांचवीं,सातवीं या नौवीं हमेशा रहे ही मेरे मित्र मेरे हमसफर
खोजने पर भी कभी ना मिल पाएंगे वैसे मित्र दुनियाभर में आजकल
वो हो प्रथम वर्ष में ही आंखों के गीलेपन को भाप लेना
या हो काउंसिल मे सदैव हर वक्तव्य पर मेरा साथ देना
कभी होने नहीं वाली अशक्त, दुर्बल या मायूस मित्र मेरी
हे ईश्वर , इसे जीवन में हमेशा जो चाहे वो सर्वस्व देना
हताश तो हुई बहुत है पर मन ना उसका कभी हारा है
उसको पता नहीं उसको कितने लोगों का सहारा है
और क्या हुआ ग़र सफलता इस बार नहीं मिली
अगली बार मंजिल को पाने का तुम्हारे पास इशारा है
और कितनी बातें कर सकता हूँ मैं चंद कागज के पन्नों में
बहुत सी चीजें हैं जो भावुक कर जाती हैं मन को खण्डों में
अब से तुम पूरा ध्यान केंद्रित करो अपनी पढ़ाई पर
तैयार कर खुद को ऐसा,पूरी बारहवीं की कठिन लड़ाई कर
जो भी ईश्वर ने चाहा है सबकुछ तुमको मिल जाएगा
तुम्हारे हिस्से का तिनका तक कोई न ले जा पाएगा
और अगर कोई है रौब दिखाता अपने रंगीन पट्टों का
तो बता देना उसको कि हमारे पास भी भंडार पड़ा है लठ्ठों का
बहुत कुछ तो न मैं इतने में तुमको कह पाया
पर जितना भी मैंने कहा क्या तुमको वो है समझ आया ?
और यदि आगया हो सब समझ, जो मैंने अबतक इन पंक्तियों में कहा
तो सफलता के पथ पर तुम्हारा रथ अवश्य ही अग्रसर हो चला
आज तुम्हारा जन्मदिवस है इसको तो मैं भूल गया
कुछ मनभावन लिखकर तुमको भेजूंगा,इसपर ही मैं तूल गया
ईश्वर से तो सदैव तुम्हारे लिए ही यही प्राथना रही है
खुशहाली और सफलता इस कदर रहे जीवन में, जैसे सूरज उगकर डूबना भूल गया
मैं अर्थ रूपी उपहार नहीं दे सकता, जिसके पीछे पागल संसार है
मेरे पास कुछ और तो नहीं,बस ये छोटी सी कविता ही मेरी तरफ से उपहार है
और ईश्वर से तो सदैव यही है मेरी अर्जी
जीवन में वो सबकुछ मिले जिसपर भी हो तुम्हारी मर्जी
© प्रांजल यादव