9 views
कैसे जिएं।
बूंदों में ज़िंदगी ढूंढने वाले,
फिज़ाओं में कायनात ढूंढने वाले।
हम आम ज़िंदगी कहां जी पाते हैं,
कहीं न कहीं ग़लत समझ ही लिए जाते हैं।
ये अंजान रिश्ते नाते दोस्त यार,
ये चक्कर खाती दुनिया की रफ्तार।
हम कैसे इसके मायने समझें?
जब हम अपने ही खयालों में उलझे।
हवाओं के साथ बहते हम बंजारे,
सुकून ढूंढते न जाने किस किनारे।
इस दुनिया के रिवाजों को सहते सहते,
न जाने किन किन हवाओं में हम बहते।
कैसे लोगों की उम्मीदों पे खरे उतरें,
और रोज़ रोज़ हम ही क्यूं बिखरें?
इस भीड़ में यूं तनहा जीने वाले,
कैसे जिएं हम मर मर के जीने वाले।
© Musafir
फिज़ाओं में कायनात ढूंढने वाले।
हम आम ज़िंदगी कहां जी पाते हैं,
कहीं न कहीं ग़लत समझ ही लिए जाते हैं।
ये अंजान रिश्ते नाते दोस्त यार,
ये चक्कर खाती दुनिया की रफ्तार।
हम कैसे इसके मायने समझें?
जब हम अपने ही खयालों में उलझे।
हवाओं के साथ बहते हम बंजारे,
सुकून ढूंढते न जाने किस किनारे।
इस दुनिया के रिवाजों को सहते सहते,
न जाने किन किन हवाओं में हम बहते।
कैसे लोगों की उम्मीदों पे खरे उतरें,
और रोज़ रोज़ हम ही क्यूं बिखरें?
इस भीड़ में यूं तनहा जीने वाले,
कैसे जिएं हम मर मर के जीने वाले।
© Musafir
Related Stories
15 Likes
0
Comments
15 Likes
0
Comments