...

14 views

ग़ज़ल... दीवाने कहाँ जाते
1222,1222,1222,1222

तिरा चेहरा मुसव्विर से हाँ बनवाने कहाँ जाते
न होते गर ये आईने तो शरमानें कहाँ जाते

तिरी ये बेवफ़ाई ने मुझे मशहूर कर डाला
लगातें हम न दिल तुमसे तो पहचानें कहाँ जाते

कि अपना दिल लिए बैठे जो रहतें हैं चौराहों पर
तिरी गलियों में न रूकतें तो दीवाने कहाँ जाते


तलब लगतीं है मय की तो चलें जातें हैं मयख़ानें
न खाते चोट दिल पे तो ये मयख़ानें कहाँ जाते

मुझे आवाज़ देतीं हैं हमेशा ये तिरी यादें
तिरी यादों की लाशों को हाँ दफ़नाने कहाँ जाते

मुहल्लें में हमारे थे सभी अनपढ़ सभी जाहिल
हम ऐ लोगों ख़ुतूत ए इश्क़ लिखवाने कहाँ जाते

कि उसने रात में छोड़ा था इक अंजान बस्ती में
हम इतनी रात में दरवाजा खुलवाने कहाँ जाते