...

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अच्छा अब विदा होते हैं (अलविदा)
नजरे टकराई मगर राहे ना मिल पाई
नजर भर देखना चाहा
मगर आंखों ने शर्म और हया की कसमें दे डाली
बातें करनी चाही मगर लफ्जों को जुबान इजाजत ना दी
कदम बढ़ाना चाहा उस ओर जिस ओर तू था लेकिन समझ ने बगावत कर दी
हम मिले भी उस वक्त थे जिस वक्त मैं टूटी और बिखरी थी
उस वक्त में किसी और को क्या समझती मैं खुद को ही ढूंढने और समझने में उलझीं थी जब नजरे मिली तो सोचा अरसां है मेरे पास मगर न जाने कब अलविदा हो गये
तुमसे मैं यह भी ना कह पाईं कि
अच्छा विदा होते हैं
बिना कुछ कहे ही हम जुदा हो गये
© freedom