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ग़ज़ल-प्रेम
प्रेम ईश्वर की एक नेमत है,
प्रेम खुद में ही इक इबादत है।
प्रेम दिल में भरा हो गर सबके,
फिर तो समझो जमीं ये जन्नत है।
सारे बंधन से सरहदों से परे,
प्रेम ही बस यहां पे शास्वत है।
पशु पौधे नदी या आदम भी,
प्रेम से ही जहां ये झंकृत है।
जोड़ता है दिलों को रिश्ते में,
प्रेम सबसे बड़ी ही दौलत है।
प्रेम की राह चल के पाओगे,
ज़िन्दगी कितनी खूबसूरत है।
© शैलशायरी
प्रेम खुद में ही इक इबादत है।
प्रेम दिल में भरा हो गर सबके,
फिर तो समझो जमीं ये जन्नत है।
सारे बंधन से सरहदों से परे,
प्रेम ही बस यहां पे शास्वत है।
पशु पौधे नदी या आदम भी,
प्रेम से ही जहां ये झंकृत है।
जोड़ता है दिलों को रिश्ते में,
प्रेम सबसे बड़ी ही दौलत है।
प्रेम की राह चल के पाओगे,
ज़िन्दगी कितनी खूबसूरत है।
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