ग़ज़ल
राधा राणा की कलम से ..✍️
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काश!कोई समझ पाता,हमें क्या चाहिए।
अपने रिश्तो में थोड़ी सी वफ़ा चाहिए।
करनी आती हमें अब,है शिक़ायत नहीं,
मोहब्बत अगर जुर्म है तो,सज़ा चाहिए।
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काश!कोई समझ पाता,हमें क्या चाहिए।
अपने रिश्तो में थोड़ी सी वफ़ा चाहिए।
करनी आती हमें अब,है शिक़ायत नहीं,
मोहब्बत अगर जुर्म है तो,सज़ा चाहिए।
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