आज की रात
कब से देख रहा एक स्वप्न,
कभी तो होगा सम्पन्न।
रूह जिसको महसूस करती रही यूँ,
जैसे मैं हूँ उसका और वो मेरी बस देखते रहे उसको यूँ ही।
लगता रहा जैसे मुलाक़ात ही नहीं होगी,
बना रहा जैसे कोई रोगी।
ये रोग किसी क़यामत से कम ना थी,
प्रतिपल लगता कि जीवन...
कभी तो होगा सम्पन्न।
रूह जिसको महसूस करती रही यूँ,
जैसे मैं हूँ उसका और वो मेरी बस देखते रहे उसको यूँ ही।
लगता रहा जैसे मुलाक़ात ही नहीं होगी,
बना रहा जैसे कोई रोगी।
ये रोग किसी क़यामत से कम ना थी,
प्रतिपल लगता कि जीवन...