8 views
धूप
यही गुनाह के सर सलामत ना रख सका अपना
बाजुएं क्षिण थी शमशीरें रखनी पड़ी
तेज धूप और सर्द हवाएं
बहारो कि भी खबर रखनी पड़ी
गुलामी साज है रफ्ता बरबाद होने का
सर से पाव तक ये बात रखनी पड़ी
और नई चिंगारियां उडाती है मजाक मेरा
मगर दिल आग कि दिल में रखनी पड़ी
वो मिल जाए तो सुनाने हैं ज़ख़्म अपने
यूं तो लफ्जों को भी ख़ामोशी रखनी पड़ी
© Narender Kumar Arya
बाजुएं क्षिण थी शमशीरें रखनी पड़ी
तेज धूप और सर्द हवाएं
बहारो कि भी खबर रखनी पड़ी
गुलामी साज है रफ्ता बरबाद होने का
सर से पाव तक ये बात रखनी पड़ी
और नई चिंगारियां उडाती है मजाक मेरा
मगर दिल आग कि दिल में रखनी पड़ी
वो मिल जाए तो सुनाने हैं ज़ख़्म अपने
यूं तो लफ्जों को भी ख़ामोशी रखनी पड़ी
© Narender Kumar Arya
Related Stories
15 Likes
0
Comments
15 Likes
0
Comments