...

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धूप
यही गुनाह के सर सलामत ना रख सका अपना
बाजुएं क्षिण थी शमशीरें रखनी पड़ी

तेज धूप और सर्द हवाएं
बहारो कि भी खबर रखनी पड़ी

गुलामी साज है रफ्ता बरबाद होने का
सर से पाव तक ये बात रखनी पड़ी

और नई चिंगारियां उडाती है मजाक मेरा
मगर दिल आग कि दिल में रखनी पड़ी

वो मिल जाए तो सुनाने हैं ज़ख़्म अपने
यूं तो लफ्जों को भी ख़ामोशी रखनी पड़ी

© Narender Kumar Arya