छुअन
सुनो,
मैं तुम्हें छूना चाहती हूं
अपने,,
कलम से निकले हर एक शब्दों में
मैं तुम्हें छूना चाहती हूं
अपनी कविता,,
और नज्मों की हर एक लय में
मैं तुम्हें छूना चाहती हूं
अपने,,
हृदय से निकलते हर एक भावों में
मैं तुम्हें छूना चाहती हूं
अपनी,,
समस्त कोरी कल्पनाओं के भंडार में
मैं तुम्हें छूना चाहती हूं
अपनी,,
पहली पंक्ति से अंतिम कविता तक के सफर में
सुनो न,,,
मेरी देह में
जब तक ये सांसे,,
ये धड़कने , या फिर ये जीवन है
मैं,,,
सच में ही
सिर्फ और सिर्फ
तुम्हें ही छूना चाहती हूं....💞
© ✍️riddhi awasthi
मैं तुम्हें छूना चाहती हूं
अपने,,
कलम से निकले हर एक शब्दों में
मैं तुम्हें छूना चाहती हूं
अपनी कविता,,
और नज्मों की हर एक लय में
मैं तुम्हें छूना चाहती हूं
अपने,,
हृदय से निकलते हर एक भावों में
मैं तुम्हें छूना चाहती हूं
अपनी,,
समस्त कोरी कल्पनाओं के भंडार में
मैं तुम्हें छूना चाहती हूं
अपनी,,
पहली पंक्ति से अंतिम कविता तक के सफर में
सुनो न,,,
मेरी देह में
जब तक ये सांसे,,
ये धड़कने , या फिर ये जीवन है
मैं,,,
सच में ही
सिर्फ और सिर्फ
तुम्हें ही छूना चाहती हूं....💞
© ✍️riddhi awasthi