...

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दिल की आवाज़
शाम ढले खिड़की के पास बैठ कर..
उसका मुझे कुछ पढ़कर सुनाना...

मेरा कोई धुन बीच में ही भूलना...
उसका उस अधूरी धुन को पूरा करना...

उसका थक कर दफ्तर से वापस आना...
मेरा उसे अपनी हाथो से बनी चाय पिलाना...

कभी बिगड़ना मेरा किसी बात पर...
कभी उसका गले लगा कर मुझे पिघलाना...

छूटी के दिनों की फुरसत भरी दोपहरों में...
कोई फिल्म देखते मेरे कंधे पर सो जाना...

में उकेरती हु तस्वीरे जहन में कही इस तरह...
और उसी यादें इन तस्वीरों में रंग भर जाती है।