यादें
वो गलियां भूल आये हैं, वो राहें भूल आये हैं,
कभी आगोश में थे जिसके, वो बाहें भूल आये हैं।
कभी बंजारों से जो घूमें थे, उसके दीदार के सदके,
वो दरिया सी, वो कातिल, निगाहें भूल आये हैं।।
मुसाफिर थें, ठहरना तो, पल दो पल का था,
वो रेशमी, सुर्ख गेसुओं की , पनाहें भूल आये हैं ।
बङी भीङ है महफ़िलों में उनके, अनगिनत चाहने वाले,
यूँ उनको चाहते रहने की, हम चाहें भूल आये हैं।।
#dying4her
©AK47
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कभी आगोश में थे जिसके, वो बाहें भूल आये हैं।
कभी बंजारों से जो घूमें थे, उसके दीदार के सदके,
वो दरिया सी, वो कातिल, निगाहें भूल आये हैं।।
मुसाफिर थें, ठहरना तो, पल दो पल का था,
वो रेशमी, सुर्ख गेसुओं की , पनाहें भूल आये हैं ।
बङी भीङ है महफ़िलों में उनके, अनगिनत चाहने वाले,
यूँ उनको चाहते रहने की, हम चाहें भूल आये हैं।।
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