...

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नए नियम बनाने होंगे।


इतिहास उठा गर देखो तो,
मनुष्य के श्रेष्ठ होना का साक्ष्य मिलता है,
सोचने की विकसित क्षमता से,
हर दिन वो फूलता खिलता है।
बाहरी रूप से कितना बदला ये,
हम सबको निःसंशय ही दिखता है,
लेकिन भीतर से मानव कितना कुंठित है,
ये शक्ल पर उसकी कहाँ दिखता है।
सोचता था आखिर जानवर डरता क्यों,
इंसान से खूंखार है वो तो,
पर सत्य तो ये है कि आज देखो समाज में,
सबसे वहशी हवसी है वो तो।
फूल सी बच्ची देख हवस जगा ले,
ऐसी मर्दानगी को क्या कहे कोई,
रूप मनुष्य का ले राक्षस बना पड़ोसी,
कैसे उसे पहचान अपनों को बचा ले कोई।
गोद में खिलाकर लाड़ जो करता था,
मन ही मन उसे देख हवस से भरता था,
34 वर्ष की उम्र का फासला तो देखो,
इस मर्दानगी का हौसला तो देखो।
20 महीने की बच्ची थी वो,
न ठीक से बोलती न चलती थी वो,
क्या ज्ञान उसे स्त्री और पुरुष का भी,
हर इंसान में बस वात्सल्य ढूंढती थी वो।
चला जाता अपनी ही माँ के पास तू,
इतनी जवानी थी उफान पर गर तेरी,
कम से कम तेरी प्यास तो मिट जाती,
लज्जा तो पहले ही मर गयी थी तेरी।
माना ये भाव थे प्राकृतिक उसके,
पर मुकाबला बराबरी का होना चाहिए,
जब जवानी 20 महीने की थी तो,
मर्दानगी भी कट कर छोटा होना चाहिए।
आ गया है वक्त इस बदलाव का समाज में,
गुनाह हैं आज के तो सजा भी हो आज में,
इन राक्षसों के लिए नियम नए बनाने होंगे,
ऐसे मर्द और मर्दानगी काट कर हटाने होंगे।

😓शर्मिंदा


© ✍️शैल