...

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ज़रा करीब तो आओ
जरा करीब तो आओ, दरम्यान दूरियाँ न बनाओ।
जल रही जवानी की आग, अब्र बन बरस जाओ।

क्यूँ बाधा नेह का धागा, कुर्ब़त में जब न रहना था,
बूँद-बूँद को तरस गई हूँ, मुझ पर थोड़ी रहम खाओ।

मधुकर हो गर तुम तो कल की कली मैं भी नादान,
चूस लो रस सारा, मेरे दिलवर इतना न शरमाओं।

मेरे जुगनू तेरी शमा जलकर कहीं ख़ाक न हो जाए,
क्यूँ तड़पाते हो 'पागल', कभी तो आगोश में आओ।

© पी के 'पागल'