...

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मेरा द्वितीय रूप..
आँखों की रोशनी हो
उज्ज्वल सा दीप हो
रात्रि में किरण हो
तो किरणों में छाया हो
कुछ मुझ जैसी
तो कुछ मुझसे बढ़कर
कुछ यू कहू
मुझे जो भाये
जो मुझसे उत्पन्न होके
मुझे सताये
मेरा वो द्वितीय रूप हो तुम...
© meetali