Zindagi se shikayat
अजीब सी ये कश्मकश ज़िंदगी की ,
मेरे समझ न आती ,
जीते जी मरना और मरके जीना ,
हर पल है बतलाती !
हर शक़श को कांच की तरह तोड़ कर ,
खुआवों को हकीकत से जोड़कर !
खुद को खुद से मिलाकर ,
अधूरे पनो के सभी राज़ फाड़कर !
मुश्किलो से निकाल के और ,
उलझनों में डाल के ,
हंसती है ये कमबख्त ज़िंदगी !;
लेकिन ज़िंदगी की...