बारिश
बारिश के दिनों में वो रोज छतों पर आ रही है कमबख्त खुद भी भीग रही हमे भी भीगा रही है
न जाने क्यों आज वो बहुत याद आ रहीं है न
पता है उसका कोई न कही वो नज़र आ रही है
दोस्त थी अच्छी और बड़ी सच्ची थी हर बात
में मासूमियत थी उसके जैसे वो एक बच्ची थी
न वो पुराने दोस्त लौट कर आते है ना वो पुराना
दौर आयेगा याद बन ये सब को रुलाएगा
वक्त पर जो पास है कदर करें उसकी बस वही
अपना है बाकी इंसान का झूठा मूठा सपना है
© -शुभम कवि
न जाने क्यों आज वो बहुत याद आ रहीं है न
पता है उसका कोई न कही वो नज़र आ रही है
दोस्त थी अच्छी और बड़ी सच्ची थी हर बात
में मासूमियत थी उसके जैसे वो एक बच्ची थी
न वो पुराने दोस्त लौट कर आते है ना वो पुराना
दौर आयेगा याद बन ये सब को रुलाएगा
वक्त पर जो पास है कदर करें उसकी बस वही
अपना है बाकी इंसान का झूठा मूठा सपना है
© -शुभम कवि
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