जनहित की जड़ की बात - 16
दुनिया में छाने के गीत गा रहे,
भुख में 107 नें 94 पे आ रहे !
स्वार्थ भरी नीयत के कारण,
नियोजन कर ही न पा रहे !!
अन्न जल साधन कम नहीं,
भूखे को भोजन का दम नहीं !
किसी में जनहित का मर्म नहीं
स्वहित जपने में शर्म नहीं !!
चुनाव लड़ते आरोपी अपराधी,
बुझाते रहते जनहित की बाती !
नित नई साजिशें रची जाती,
जन जीवन मौत सदृश बनाती !!
जनता मदद बिन जी न पाती,
मदद हेतु इनके ही दर पे जाती...
भुख में 107 नें 94 पे आ रहे !
स्वार्थ भरी नीयत के कारण,
नियोजन कर ही न पा रहे !!
अन्न जल साधन कम नहीं,
भूखे को भोजन का दम नहीं !
किसी में जनहित का मर्म नहीं
स्वहित जपने में शर्म नहीं !!
चुनाव लड़ते आरोपी अपराधी,
बुझाते रहते जनहित की बाती !
नित नई साजिशें रची जाती,
जन जीवन मौत सदृश बनाती !!
जनता मदद बिन जी न पाती,
मदद हेतु इनके ही दर पे जाती...