...

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नानी का घर
छुटियां होते ही होता था एक पल का बस इंतज़ार,
जल्द ही आए वो दिन जब में करू नानी के घर का दीदार।
नानी के घर लग जाता था बाजार,
जब मिलजाते थे हम , मौसी और मामा के बच्चों के साथ।
रात को सोते समय लग जाते थे गद्दे कतार से,
करते थे रात भर बातें ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार से।
सुबह होते ही सब पहुंच जाते थे पार्क में,
खेलते थे अनेकों खेल और कई बार किसी को परेशान करने के लिए छुप जाते थे बड़ी बड़ी घास में।
साथ में बैठ के मैगी और शिकंजी का अलग ही मजा आता था,
होमवर्क सारा तीन दिन में पूरा है करना यही हमारा इरादा होता था।
रात को गली में धूम मचाते थे,
जब गली के सारे बच्चे एक को पट्टी बांध केे दौड़ लगाते थे।
सच में वो बचपन और नानी के घर की याद,
सोचती हूँ क्यों होगई मैं बड़ी और ये बातें रह गई सिर्फ पेन और पेपर के मोहताज।







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