वो... By- Sagar Raj Gupta (कवि जी )
न जाने किस बात पर बहक रहे हैं वो,
जाड़े में भी सावन बनकर बरस रहे है वो,
एक तरफ मेरी माँ मुझे आशीर्वाद देकर जिंदगी दे रही है
दुसरी तरफ हमारी मौत देखने के लिए तरस रहे हैं वो।...
मेरी पलकों की पालकी में सो रहे थे जो
अब न जाने किस भीड़ में खो रहे है वो
रब ही जनता है क्या शिकवा थी उन्हें हमसे
जो हमें छोड़कर रकीब के हो रहे है वो....
बात अब मेरी समझ न पा रहे है वो
हमें ही अपना न जता रहे है वो
हम तो...
जाड़े में भी सावन बनकर बरस रहे है वो,
एक तरफ मेरी माँ मुझे आशीर्वाद देकर जिंदगी दे रही है
दुसरी तरफ हमारी मौत देखने के लिए तरस रहे हैं वो।...
मेरी पलकों की पालकी में सो रहे थे जो
अब न जाने किस भीड़ में खो रहे है वो
रब ही जनता है क्या शिकवा थी उन्हें हमसे
जो हमें छोड़कर रकीब के हो रहे है वो....
बात अब मेरी समझ न पा रहे है वो
हमें ही अपना न जता रहे है वो
हम तो...