...

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प्रेम सौगातें
सोचती हूँ....
सम्भाल कर रख लूँ ये गुलाब
जो तुमने मुझे मुस्कुराते हुए दिया था
जिसे देते वक़्त तुम्हारी उंगलियाँ
हौले से मेरी उंगलियों से टकरा गई थीं

ये चूड़ियाँ....
जो तुम मेरे जन्मदिन पर उपहारस्वरूप लाए थे
और पकड़ाई थीं झिझकते शरमाते हुए
ये कहते हुए कि देखो....
मुझे ये सब खरीदने की समझ नहीं

ये किताब .....
जो तुम मेरी पसन्द की है , जान कर ,
न जाने किस दुकान से...