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अभिमानी
अभिमानी

दक्ष ने बढ़चढकर किया महायज्ञ प्रचंड
अभिमानी को दंभ का मिला यथोचित दंड
यज्ञ में था सबको बुलाया
केवल शिव को ही बिसराया
गई सती वहाँ मोह की मारी
शिव अपमान से द्रवित हुई भारी
भस्म हुई सती अग्निकुंड में
महादेव जले विरह अगन में
क्रोध भंयकर पीड़ा अपार
चहुदिशी था बस हाहाकार
अभिमानी का टूटा दंभ
हुए वहाँ सती देह के खंड
जो अभिमानी चला था करने शिव से द्वेष
शिव क्रोध से भस्म हुआ सब ,कंलक रहा बस शेष
गर्ग साहिबा
© Garg sahiba

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