...

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दस्तूरे मुहब्बत
एक गुलाब तेरे नाम का....फिर आज दामन में छुपा रही हूं
दबे– दबे सारे जज्बात....आज फिर से जगा रही हूं
अरमानों के सोपानों पर....एक –एक कदम बढ़ा रहीं हूं
प्रेम भावों से भरी हुई मैं ...सपने नन्हें सजा रही हूं
प्रेम बीजों को धरती में रोप ...रिश्तों की बगिया बना रही हूं
माना मुश्किल है सफर....मुझको भी है इसकी खबर
फिर भी देखो ना सनम ....कैसे मैं खिलखिला रही हूं
दुख के कांटों को चुन –चुन कर .....मैं भी
एक गुलाब तेरे लिए .....अपनी बगिया में खिला रही हूं
हां प्रिय मैं भी आज रोज डे मना रही हूं
दस्तूरे मुहब्बत कुछ यूं .....आज मैं भी निभा रही हूं
✍️✍️✍️✍️© Ranjana Shrivastava
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© Ranjana Shrivastava