...

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मैं हूँ
न ज़्यादा भोगी न ज़्यादा त्यागी मध्यम मार्ग का हूँ राही,
धर्म से कोसों दूर हूँ मैं मानवता का बस हूँ एक पूजारी,

सच का दामन यूँ थामा है के कलम रहती है लिखने तत्पर,
सच से कौन मुदित हो कौन हो खिन्न कोई फ़र्क नहीं मुझपर,

कोई नहीं है ऐसा इस जहां में, जिसके प्रभाव में मैं आऊँ,
मैं जैसा भी हूँ सदा वैसा ही रहूँ यही कामना सदा मैं चाहूँ,

© अदंभ