...

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💞 उ-डा-न 💞
देखा अभी एक परिन्दे को ,
ऊडान भरते हुए|

हाँ सपनो की नहीं थी ,
पर ऊडान तो थी|

क्या किस्मत पायी तूने
हाँ तूने ओ परिन्दे !!!!

ना मन मे बोझ किसी का ,
ना ही कोई बंधन |

मैं भी उड़ना चाहती हू ,
अपने सपनो की उडान |

दूर आसमान मे,
जहाँ ना माया का जाल हो ,

और ना मोह का बंधन ,
बस हो स्वतंत्रता का स्पंदन|

स्वतंत्रता सिर्फ शरीर की नहीं ,
विचारो की और सोच की भी |

लेकिन कुछ शिक्षित लोग ,
करते हैँ इसका खण्डन् |

मानक और मापदंड ,
हुआ बस स्त्री के लिए इनका जन्म ??

मत काटो पंख इनके ,
उड़ने दो इन्हे भी हर छण |

एक मौका तो दो ,
नहीं हैँ ये किसी से भी कम |

--- mohita✍




© Mohita