...

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कभी रुक गए, कभी चल दिए...!
कभी रुक गए कभी चल दिए
कभी चलते चलते भटक गए
यूं ही उम्र सारी गुजार दी
यूं ही सितम सारे सह गए,
कभी नींद में कभी होश में
तू जहां मिला तुझे देखकर
न नज़र मिली न जुबां हिली
यूं ही सर झुका के गुजर गए,
कभी जुल्फ पर कभी चश्मे पर
कभी तेरे हंसी वजूद पर
जो पसंद थे मेरे किताब में
वो "शेर" सारे बिखर गए,
मुझे याद है, कभी एक थे
मगर आज हम हैं जुदा जुदा
वो जुदा हुए तो संवर गए
हम जुदा हुए तो बिखर गए,
कभी अर्श पर कभी फर्श पर
कभी उनके दर कभी दर बदर
गमें आशिकी तेरा शुक्रिया
हम कहां कहां से गुजर गए,
कभी रुक गए कभी चल दिए
कभी चलते चलते भटक गए...!