...

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ऐ शाम कुछ तो बोल
ऐ शाम कुछ तो बोल
यू चुप चाप क्यों है?
आज तेरे हवाओं में वो ठंडक नही है,
न वो प्यारी सी चुभन है,
आज फिर से तू खामोश खड़ा है,
क्या तेरा भी कोई आशना तुझसे जुदा है?

क्यों तू इतनी रूठी है,
कुछ जैसे कही टूटी है,
शाम तो ये सोया सोया सा है,
कुछ तो बता आखिर तू कहा खोया है?

ज़रा बाहे फैला, नज़र उठा, आशा के किरण हवाओं में घोल,
तू खफा ठीक नही, ऐ शाम कुछ तो बोल।