कोट्स-ए-दास्तां
कोट्स (1 से 12)
मिरि हर दास्तां में इश्क़ की आरजू तो पढ़ी होंगी...!
काश कोई होता तो मोहब्बत भी यूं ही गढ़ी होती..!!
हर नशेमन की आंखों में नशा इश्क़ का नहीं होता..!
किसी में जख्मों का तो किसी में ज़िन्दगी का होता...!!
इन गुलाम शायरों की इश्कगी, मायुशगी और तन्हाई भी देख लीजिए..!
सिबाए इसके कौन रख सका हैं इन्हे गुलाम ज़मानगी से ही पूछ लीजिए..!!
आए ना याद उनकी जो हमने हर तस्वीर उनकी हटा दी...!
अब तन्हाईयां भी उनके बगैर बीरानी सी लगती हैं...!!
मोहब्बत भी कल तक जो उनके होने तक जो ना थी...!
आज उनके हर निशा ना होने से ये ज़िन्दगी भी बेगानी सी लगती हैं..!!
हम लिख ना पाए मोहब्बत की दसिता ए जुबानी अपनी..!
उनकी हर एहसास ए अदा हमें अब क्यूं कहानी सी लगती हैं...!!
मिरे अल्फाज़ों का भी अपना ही इक हुनर हैं...!
लिखता हूं खामोशियों में शोर सुनता पूरा शहर हैं...!!
एक निमिष में जुड़ा था ये रिस्ता..!
एक निमिष में टूट गया ये रिस्ता...!!
अच्छा ही हुआ जो निकल गए वो आंसू भी जो याद में किसी की इन आंखों में ठहरे थे..!!
मुदातों बाद हुआ एहसास के ये दिल ए रिश्ते भी कभी गहरे थे..!!
लिखता हूं कुछ ना कुछ खोज खबर रखने के लिए...!
लोगों के दिलों जेहन में सोई आग जलाए रखने के लिए..!!
इश्क़ में वरबाद हो के मोहब्बत ए आवदगी हमने सीखी है...!
बेरहमी ए दिल पे कैसे करें ये अदवगी तुमने सीखी है....!!
खता ए इश्क़ की भी क्या हुई के दिल ए ज़ख्मदीन हों गई..!
अब घर से भी क्या निकलें बाहर आवोहबा ए भी नमकीन हों गई...!!
ये इश्क़ की ज़िन्दगी दो ही तरफ है..!
इक तेरी तरफ है इक मेरी तरफ है..!!
हसरत ए तमन्नाओ में किस तरहा उलझें है लोग...!
खिलोना ए जिस्म से भी कहां सुलझते है लोग..!!
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