कोट्स-ए-दास्तां
कोट्स (1 से 12)
मिरि हर दास्तां में इश्क़ की आरजू तो पढ़ी होंगी...!
काश कोई होता तो मोहब्बत भी यूं ही गढ़ी होती..!!
हर नशेमन की आंखों में नशा इश्क़ का नहीं होता..!
किसी में जख्मों का तो किसी में ज़िन्दगी का होता...!!
इन गुलाम शायरों की इश्कगी, मायुशगी और तन्हाई भी देख लीजिए..!
सिबाए इसके कौन रख सका हैं इन्हे गुलाम ज़मानगी से ही पूछ लीजिए..!!
आए ना याद उनकी जो हमने हर तस्वीर उनकी हटा दी...!
अब तन्हाईयां भी उनके बगैर बीरानी सी लगती हैं...!!
मोहब्बत भी कल तक जो उनके होने तक जो ना थी...!
आज उनके हर निशा ना होने से ये ज़िन्दगी भी बेगानी सी लगती हैं..!!
हम लिख ना पाए मोहब्बत की...