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चूल्हे की चंदिया
जा बैठ जाता मैं अपनी अम्मा के पास
वो बैठी फूंकनी से आग सुलगाती
गरम गरम रोटियां सेकती
जल जाते उस कोयले से हाथ
फूंकनी से हवा फूंकती
धुंए से आंसू आ भर आते
आंखों से
फिर भी न हारती,
सांस भी भर आती
फूंकनी से फूंक मारते
फिर भी न रुकती वो चंदिया का बनना
पहली चंदिया गाय को देती
फिर मुझे खिलाती
आखिर में क्रम कुक्कुर का भी आता
वो भी खाता अम्मा की बनी
वो चूल्हे की चंदिया।।
-kumar vikas
वो बैठी फूंकनी से आग सुलगाती
गरम गरम रोटियां सेकती
जल जाते उस कोयले से हाथ
फूंकनी से हवा फूंकती
धुंए से आंसू आ भर आते
आंखों से
फिर भी न हारती,
सांस भी भर आती
फूंकनी से फूंक मारते
फिर भी न रुकती वो चंदिया का बनना
पहली चंदिया गाय को देती
फिर मुझे खिलाती
आखिर में क्रम कुक्कुर का भी आता
वो भी खाता अम्मा की बनी
वो चूल्हे की चंदिया।।
-kumar vikas
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