...

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दीदी भारत नहीं बल्कि सारे जग की रत्ना थीं
इस बासंती ऋतु में यह क्या सूझा परम पिता को,
सुरविहीन कर छोड़ गया प्राणों का विहग 'लता' को।

दशकों जिसने गीत सुना कर सदियों की निधि दी है,
विधि ने उसकी क़ीमत हम सुननेवालों से ली है।

यह परलोक गमन सब के सीने की टीस हुआ है,
स्वर्ग आज धरती से निश्चित ही...