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वक्त का पहिया
वक्त का पहिया धीरे धीरे
कहां से कहां बढ़ गया
मैं वही हूं खड़ी हुई
जैसे कोई पत्थर बन गया
कोई नहीं आएगा मुझको तारने
ये कलयुग है साहब...जो बना वही बन गया
वक्त का पहिया धीरे धीरे...
कहते है चरित्र... कभी नहीं बदलता
पर देखा है मैंने कितनों को बदलते हुए
अजब रंग में रंगे हुए हैं लोग
मतलबपरस्ती में चरित्र देखो कहां से कहां बह गया
वक्त का पहिया धीरे धीरे...
© All Rights Reserved
कहां से कहां बढ़ गया
मैं वही हूं खड़ी हुई
जैसे कोई पत्थर बन गया
कोई नहीं आएगा मुझको तारने
ये कलयुग है साहब...जो बना वही बन गया
वक्त का पहिया धीरे धीरे...
कहते है चरित्र... कभी नहीं बदलता
पर देखा है मैंने कितनों को बदलते हुए
अजब रंग में रंगे हुए हैं लोग
मतलबपरस्ती में चरित्र देखो कहां से कहां बह गया
वक्त का पहिया धीरे धीरे...
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