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है चुप ये लब बहुत, मगर कहानियाँ बहुत है
कहते किस से कि वक़्त की निशानियाँ बहुत है

आसमाँ भी चुप है और चाँद भी मायूस है
काली घटाओं में छुपी हुई, बैचैनियाँ बहुत है

छुपाती है पलकें, ना जाने कितने राज़ गहरे
रुकी एक बूँद में मगर, कंपकपाहट बहुत है

बेड़ियों से बांधते है ये संस्कार और पम्पराएँ
देहरी के भीतर अनसुनी सिसकियाँ बहुत है

ना बाहर कोई अपना, ना करीबी दिखता है
तेरे इस जहाँ में, " देवा", बेगाने चेहरे बहुत है

दर्द को सहने की तो अब आदत सी हो चली
फिर भी ए जिंदगी तुझसे, अभी उम्मीदे बहुत है


© * नैna *