इब्तेदा-ऐ-सफ़र
जो मन ना मिले किसी से, तो वो मनमीत ना हो
मंज़िल जो मिल जाए राही को, तो उससे प्यारी प्रीत ना हो
इब्तेदा-ऐ-सफ़र में मुक़म्मल होती नहीं ख़्वाहिशें बेपनाह
फिर हारना ही क्यूँ, जब...
मंज़िल जो मिल जाए राही को, तो उससे प्यारी प्रीत ना हो
इब्तेदा-ऐ-सफ़र में मुक़म्मल होती नहीं ख़्वाहिशें बेपनाह
फिर हारना ही क्यूँ, जब...