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" कहता है फ़किरा, के सुन लो मेरी रानी; एक दीवानें, की- कहानी!"
" तुम अगर मील भी जाते
तो शायद इस बार भी यह सायर शायद
तुम अब हमसे मिलकर ऐ मेरे मेहबूबा
सुन ले हमसफ़र वो मोहब्बत मेरी
_____दुर बहुत दूर अब हो जाते!
रौशनी जैसे दीपक पिछवाड़ा
मां जो मेरी हर वक्त जो कहा करती थी
जिसका पति कमाता नहीं फ़किरा
कुल्क्क्षणी उसे सब कहते हैं
फ़रिश्ता जानता था सबक जो
जिम्मेदारी ऐ जिन्दगी का कहानी
हर कोई भला कहां लिख पाता है!
अंधकार नगरी में सदा है रहें चन्द्रबली
निशा बेला वह हर पल अलबेला मेरी राधे
लिलाधर हर बार यह कुंडली ऐ तकदीर
वह तकलीफ़ जो न लिख सके ई लेखकवा
सुन ले रे ऐ मेरी पगड़ी ऐ पगड़ी उ पियकरवा
पिता जो कुंवारा कुंवर कोई राज आर्यन गुप्ता
बाप जो एक पीता बन रहा था रे ऐ उर्मिला
कुत्ता कोई वह भी वफादार कोई रिश्ता
एक फ़रिश्ता कहलाता हैं जो F#@KiRa
हर कोई ऐ इल्जाम जिवन भर
रे जिवन साथी वा
प्यार वो निर्मल जैसे कोई निशा ऐ निराशा
वह साथ कहां चल पाता है!
मैं जल रहा हुं जल-थल अम्बर
रात के सीतारे रिश्तेदारों से फुर्सत
फुलों में क्लीं भी शेहजादी जैसे
रानी भी कोई इस रात अब
जैसे धीरे धीरे खिलने को है
तुम अगर फिर मील भी गए
तो अब भला क्या होगा मेरे दिलबर
महल जैसे आज भी मोहब्बत
अपने परवदिगार के फ़किरा
इंतजार में आज भी जैसे खामोश
उल्फ़त ऐ सपनों की रंग मंच पे
सतरंज जैसे कोई सप्त ऋषि
स्वास्थ्य ऐ स्वास्तिक बिन्दु अति शान्ति
दुवा ऐ दुर कहीं से आ रही हैं
नज़र उसकी नजारा एक नारायण
अपने अक्क्षणी सैना के साथ आने का
ऐलान माध्यम के एक फ़किरा
करते करवाते जैसे जा रहे हैं
८४ का चक्र अब पुर्ण हो रहा हैं
जैसे कोई पुर्णिमा बुध एक बुंद
उस पाक कलिक अवतार के हाथों
प्यास जन्म जन्मांतर का कोई खातिर
तरस रहा हैं तरप रहा है ऐ मेरी रानी
तुम अगर मील भी गए तो अब
उसके रंग में तुम्हें भी तो रंग जाना है
काला नहीं जो थोड़ा कान्हा अपना
१६ कला सम्पूर्ण चौरसिया क्षत्रिय
थोड़ा सा ज़रा शावला है
मुरली अनसुनी कई न्ई पुरानी
अंदाज में हमको सुनाता है
लग गई जो लग्न नीशानी
नशा उस निशा का जैसे मैं शीशा
परछाईं बोलता तो वैसे कुछ भी नहीं
मगर एक बार जो खामोशी का द्वार
खुद खुल गया जो फिर फ़किरा
वह नशा कभी भी उस मौला का मेरी मलिका
नशा वह फिर कभी कहा उतरता है
तुम अगर अब मील भी गई मेरी मीरा
सुन लो मेरी एक जवानी की कहानी
इतिहास गवाह है के सून लो ऐ जमाना
राधा को कभी भी वो कहां मिला है?
उर्मिला या उर्वशी हो तुम मेरी मनमोहनी
लिलाधर भी तो बहुत बड़ा भोला हैं
बोल कोई जो खोल दे खौल खाल की
के रोटी चोखा जो गरीब का खाना
आलू परांठा उसे कहा बनाने आता है
तुम अगर साथ मील भी गई सुन बीच मज्धार
अगर मगर के मगरमच्छों की प्रजाति को
इन वन का एक बन्दरवा अपने मदारी को
उ नाम जो सूना है कोई रामेश्वर राजुवा
तराजू जो बचपन से थोड़ा तोतलाता
तोता नहीं जो मुछ कोई पुंछ रखता है
के सुबह का भुला जो शाम आया रे मामा
मामू वह तुम्हें बना रहा हैं
के रात बिता के जो चली जाये एक विधवा
मजबूरी कोई ममता मगर हैं जो एक आंटी
चाची जो कोई सम्भोग शक्ति कहती हैं
डाक्टर न दोसर पती न कोई वकील तीसरा
के सुन ले रे मेरी बीवी वो मेरी अनपढ़ रानी
पति एक सच्चा बात कहता है
ग्रहों के गदहों को वह अपना क्यों
बाप क्यों कुंवारा कोई बनाता है
जैसा कर्म आज जो कर रहा है
फल उसका वह सब भुल रहा हैं
के मां जिसकी लड़ती हैं हरदम जो
सुन रखैल कोई अपने मरदवा
सुकुन का सांस कोई मेहमान ऐ सांस
सास उसकी जो गरियाये मादरचोद
अपने ही औलादवा जैसे f#@kira
तो सून ऐ साथ वह सातों फेरे
कसम फ़किरा अब उसे पूरा करता है
छोड़ रहा हैं जो कभी था ही न उसका
खामखां अब कहां वो अहंकार अकड़ना
दिन रात कभी भी कहा अब कभी सोता है
जो आया ही हैं सबकी आधी अधुरी नींद को
बस पुरा करने एक फ़किरा सुन तू भी ऐ नानी
ममहर भी एक दिन भाई भौजाई जैसे लूगाई
बेटा वहीं तेरा नालायक भाई हिसाब रहने खाने का
एक न एक दिन जरूर बता सुना देता हैं
तुम अगर अब मील भी गई रानी
इल्जाम जो रंड़ी शक जब एक साथ था
अलग रह कर सीता कभी फिर राम की भला
लौमडी ऐ मकड़ी माया नगरी जो कोई रहतीं हैं
देवी तू जो होगी भी अभागी बेवकुफ लड़की
संग कहा फिर भी कभी रह पाती है
नईयां हजाम सोनर क्या खेल खेवईया
संत भी इस रंगमंच के सतरंज में
कोई बीर क्षत्रिय भी हार जाता हैं
तुम अगर अब मील भी गई
तो शायद इस बार भी
तुम हमसे मिलकर
सुन ले वो मेरी मोहब्बत
दुर बहुत दूर हो खड़ा अब
मुस्कुराते हुए गुज़र जायेंगे
रौशनी जैसे दीपक पिछवाड़ा
अंधकार नगरी में सदा है रहें
सबको वह उजाला एक झोपड़ी फ़किरा
जला कर वह लाश तुम्हारी
अमर जैसे आत्मा होता हैं
वह खुशी झोली डाल पात एक माली
फुल वह डाल जायेंगे
April Fool न बना सके फिर कोई
के सुन ले रे वो मेरी पगली
मैं भी तो जल रहा हुं जल-थल अम्बर
जानूं जानु मैं भी तु के मछली तू वहीं
अभी भी उसी जल की रानी है
रात के सीतारे रिश्तेदारों से फुर्सत
जहां फुलों में क्लीं भी शेहजादी जैसे
रात की रानी भी अब खिलने को है
तुम अगर आ भी गए तो शायद
महल जैसे आज भी न मोहब्बत
अपने परवदिगार के फ़किरा
इंतजार में आज भी खामोश
दुवा उसकी आने का
जो कर रहा हैं
अवतार जो श्रृंगार ऐ संघार पापीयों का
अंत समय करने आ रहा हैं
तुम अगर मील भी गए तो अब
सुनो तो मेहनत ऐ मोहब्बत मेरी
ज़ालिम अब कुछ भला रिश्ता
क्या नीभा भी पाओगे?
एक बुंद पर पड़ गई तो सून मेरी पगली पत्नी
प्यार से तुझपे भी जैसे हो कोई अपना:
वह ताजमहल निशानी जैसे कोई मिनार
उस चांद को छुते जा रहा है
अपना ही तो मेरी मलिका कोई
वहीं मेरी सपनों की वह, परी-
के फिर, तुझको - कहुंगा!
राजा नहीं पर रज़ा हैं इस राजू की
आखरी सांस तक जो लड़ता है
आज तूझे फिर से कहता है फ़किरा
राह ऐ मंजिल जो अब भी खड़ा हैं
अगर आज भी न मानी तो सून मेरी कहानी
जुबानी जो एक जुबान देता है
वह दरवाजा तेरे लिए हमेशा के लिए
बन्द था, रहेगा और सदा ही रखा है
वरना एक पगला दिवाना
एक पीता एक पती जो कहता है
उसी का तो ही सून लो मेरी रानी,
___________ इंतजार कर रहा है!"

एक पीता उनके मां के लिए
के अब एक मां जो मुस्कान
खुशी जो इस फ़किर की कुटिया को
रौशन कर सके जो कोई जैसे फरिश्ता
एक दोस्त कृष्ण सका जैसा सुदामा
राम जैसे सत त्रेतायुग से ७४ का आखिरी जन्म
ऐ सुन जिवन साथी वा
अब एक मां देवी कोई
जो इस बड़े बच्चों को भी सम्भाल पाते
दर बदर एक फ़किरा उसे मेरी रानी
_______________ ढुंढ रहा है!

के कहता है फ़किरा अब
सून लो वो मेरी रानी
इस दीवानें की कहानी
उसी की जुबानी
जैसे जो बहुत देर तलक दुर था
पढ़ते पुछते पता उस दीवानें का
दिन पर दिन और उसके दिल के करीब
वह अनामिका चेहरा ऐ तस्वीर
धीरे धीरे और करीब फ़किरा वो
____________ आ रहा हैं!"

© F#@KiRa BaBA